ज़मीन ठंडी धरा सुनी हवा चलती
तो झुक जाए हर एक डाली
चले पंछी हैं जीने को जो हो सर्दी
तो सोए बीच में बचा ले खुद को
ज़रूरी हे वो करे खुद पर यक़ीन
करूँ मैं यक़ीन जानू यह मैं भी
कौन हूँ मैं
पर जाऊँ कहाँ पे मैं
कितनी आवाज़ें गूंजे कानो मैं
कौन सी आवाज़ सुनूँ और मानू मैं
कैसे जानू कहाँ जाऊँ यहाँ से
गई दुनिया बदल मैं भी गई हूँ सी
अब कहना मैं अलविदा
ना राहो में आए नज़र मुड़े डगर
जाऊँ किधर मैं चाहूँगी जिधर
दिल मै हैं कई जज़्बे जो कहते मुझसे
चुन लूँ अब नए ढंग से नई राहें खुद से
बचाऊँ कहा पर सिर
कितनी आवाज़ें गूंजे कानो मै
कौन सी आवाज़ सुनूँ और मानू मैं
कैसे जानू कहा जाऊँ यहाँ से.....