जगत में अनिवार्य रूप से जो अब चाहिए वह है प्रेम, मधुर प्रेम
एकमात्र यही है जो दुष्प्राप्य है
जगत में अनिवार्य रूप से जो चाहिए वह है प्रेम, मधुर प्रेम
नहीं, केवल एक के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए।
हे ईश्वर, हमें एक और पर्वत की आवश्यकता नहीं है।
आरोहण करने के लिए पर्याप्त पर्वत और टीले हैं।
पारगमन के लिए महासागर और नदियाँ हैं
समय के अंत तक पर्याप्त है
जगत में अनिवार्य रूप से जो अब चाहिए वह है प्रेम, मधुर प्रेम
एकमात्र यही है जो दुष्प्राप्य है
जगत में अनिवार्य रूप से जो चाहिए वह है प्रेम, मधुर प्रेम
नहीं, केवल एक के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए।
हे ईश्वर, हमें एक और चरागाह अथवा घासस्थली नहीं चाहिए
हमारे पास पर्याप्त मक्का और गेहूं के खेत हैं
प्रकाश के लिए सूर्य और चन्द्रमाँ हैं ।
यदि तुम जानना ही चाहते हो तो हे प्रभु सुनो
जगत में अनिवार्य रूप से जो अब चाहिए वह है प्रेम, मधुर प्रेम
एकमात्र यही है जो दुष्प्राप्य है
जगत में अनिवार्य रूप से जो चाहिए वह है प्रेम, मधुर प्रेम
नहीं, केवल एक के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए।