यह मकान नहीं तुम्हारा घर
फिर भी तुमने इस में आराम किया,आराम किया
शब्द नहीं काफ़ी बताने के लिए
तुम कितनी हो उदासीन
क्यूँकि लगता हैं तुम नहीं चाहती यहाँ से जाना
शायद मुझे सोच समझ के लेना था क़िस्मत का फ़ैसला ओह
मैं कितना ग़लत हूँ, मैं कितना ग़लत हूँ
(तुम्हें आने दिया मेरे)
तुम्हें आने दिया मेरे घर में
(अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ)
अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ
(कभी ना था इतना कमज़ोर)
हे अकेलापन में घिरी लड़की
क्या तुमने बताया अपने दोस्तों को
कैसे तुम ने लिया था मेरा नाम ज़ोर से
क्या ज़रूरी था दुनिया को यह बताना
अब तुम सब लड़कियाँ चाहती मेरी बर्बादी
तुम चाहती तो बन सकती थी सच्चा प्यार
अब बदलना पड़ता नम्बर महीने में दो बार
तुम चाहती तो रखती सिर्फ़ इसे हम दोनो के बीच
मैं कितना ग़लत हूँ, मैं कितना ग़लत हूँ
(तुम्हें आने दिया मेरे)
तुम्हें आने दिया मेरे घर में
(अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ)
अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ
(कभी ना था इतना कमज़ोर)
बेबी जानता था तुम होगी मेरे बिस्तर में
नहीं दिखाता मैं तुम्हें कोई प्यार
छोड़ देता क्लब में ही
पर तुमने कहाँ तुम नहीं चाहती रुकना वहाँ
तुमने कहा तुम हो अकेली
और नहीं कोई ठिकाना जाने के लिये
अब कौन करता तुमको फ़ोन लगातार?
मैं कितना ग़लत हूँ, मैं कितना ग़लत हूँ, मैं कितना ग़लत हूँ
मैं कितना ग़लत हूँ, मैं कितना ग़लत हूँ
(तुम्हें आने दिया मेरे)
तुम्हें आने दिया मेरे घर में
(अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ)
अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ
(कभी ना था इतना कमज़ोर)
(ओह बेबी)
मैं कितना ग़लत हूँ, मैं कितना ग़लत हूँ
(तुम्हें आने दिया मेरे)
तुम्हें आने दिया मेरे घर में
(अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ)
अब जानती तुम मैं कहाँ सोता हूँ
(कभी ना था इतना कमज़ोर)