बिना घटाव-वढ़ाव के दुखों का सागर
जहां किसी भी बंदरगाह का कोई चिन्ह नहीं है।
एक तरफ से दूसरी तरफ तक आकाश धूसर है
और दुनिया में बेचैनी छाई हुई है
तेज़ी से फटते हुए इस इस समुद्र के चतुर्भुज में,
क्षितिज पर, हमेशा आगे हवा है ,
एक सपना है जो तड़फ रहा है
धीरे धीरे, दुखी होकर…।
हमारे हाथ और बाहें किस काम के हैं
और किसलिए हैं हमारी पाँचों इंद्रियाँ?
यदि हम आपस में गले नहीं मिल सकते
दोनों हार चुके हैं ।
जीवन का जहाज जो मुझे ले गया है
तिमिर के एक समुद्र में क्षतिग्रस्त होने के लिए
मेरे बालोचित सपनों के साथ।
दुखद नियति!
चट्टानों से टकरा कर यह टूट गया था
और खो गया मेरे सपने को साथ ले कर ;
और झाग सहित
धुंध में लुप्त हो गया ...।
मुस्कुराने के मेरे ढंग ने प्रतिशोध ले लिया ।
तुम्हारे लिए और कुछ नहीं होने के दुःख का …।
तुम जो हमेशा और हमेशा के लिए मेरे भगवान थे
सब कुछ होने के नाते, तुम अब कुछ भी नहीं हो!