और अगर मैं तुमसे कहूँ कि चाहे हम कितने भी लोगों से क्यों न घिरे हों, हमारी तन्हाई की वजह से हमारा दिल ढह जाता है
और चाहे हम पर अपने चाहने वालों की निगाहों की बाढ़ हो
हमारे संजोए हुए सपने साकार नहीं हो पाते
ज़िंदगी नन्हे से निर्जीव शरीरों
में रहने के लिए आती है
एक संरक्षक देवी की तरह
जो अनगिनत अकेलेपनों को एक धागे में पिरोती है
मृत्यु की देवी
एक दिन जीवन वापस लेने आएगी
वह, बच्चे की तरह हाथ बढ़ाती है
और नियति का गला अच्छी तरह मरोड़ के रख देती है
और हम रोते हैं, हाँ हम आदमी की नियति पर रोते हैं
क्योंकि मन ही मन हम जानते हैं कि चाहे हम खुद को कितना महान भी क्यों न समझें, हम वास्तव में कुछ नहीं हैं
हमारे हाथ दूसरों से उलझे हैं
चाहे हमारा आकाश दुसरे की तुलना में अधिक नीला है
हम जानते हैं कि सबसे वफादार देवदूतों का भी
एक न एक दिन अंत हो जाएगा।
एक न एक दिन मर कर खत्म होना है
और यहां तक कि हमारे लिए दोस्ती हमेशा मिलती है
हर जन्म के बाद मृत्यु है,वह वहाँ है, हमें याद दिलाती है
कि अगर प्राणी एकजुट हों
तो वे एक दुसरे से अंत में अच्छी तरह से विदा हो सकते हैं
मृत्यु की देवी
एक दिन जीवन वपिस लेने आएगी
वह, बच्चे की तरह हाथ बढ़ाती है
और नियति का गला अच्छी तरह मरोड़ के रख देती है
और हम रोते हैं, हाँ हम आदमी की नियति पर रोते हैं
क्योंकि मन ही मन हम जानते हैं कि चाहे हम खुद को कितना महान भी क्यों न समझें, हम वास्तव में कुछ नहीं हैं
क्योंकि,प्रत्येक प्राणी बढ़ता है
उसी प्रकाश की ओर, उसी सीमा की ओर
वह हमेशा हमारे प्राण लेने के लिए आएगी
मानो प्रत्येक ख़ुशी के लिए सजा भुगतनी होगी
और हम रोते हैं, हाँ हम आदमी की नियति पर रोते हैं
क्योंकि मन ही मन हम जानते हैं कि चाहे हम खुद को कितना महान भी क्यों न समझें, हम वास्तव में कुछ नहीं हैं