राम स्वरूप तुम्हार
बचन अगोचर बुद्धिपर
अबिगत अकथ अपार
ने दिनेति नित निगम कह
राम स्वरूप तुम्हार.
सुनहु राम अब कहउँ निकेता .
जहाँ बसहु सिय लखन समेता.
जिन्हके श्रवन समुद्र समाना
कथा तुम्हारी सुभग सरि नाना.
भरहिं निरंतर होहिं न पूरे .
तिन्हके हिय तुम कहुँ गृह रूरे.
लोचन चातक जिन्ह करि राखे .
रहहिं दरश जलधर अभिलाषे.
तिन्हके हृदय सदन सुखदायक .
बसहु बंधु सिय सह रघुनायक.
जस तुम्हारी मानस बिमल
हंसिनि जीहा जासू.
मुकुताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियतासु.१२८.
प्रभु प्रसाद शुचि सुभग सुबासा .
सादर जासु लहइ नित नासा.
तुम्हहि निवेदित भोजन करहीं .
प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं.
कर नित करहिं राम पद पूजा .
राम भरोस हृदयँ नहीं दूजा.
चरन राम तीरथ चलि जाहीं .
राम बसहू तिन्हके मन माहीं.
सबु करि मागहिं एक फ़लु राम चरन रति होऊ.
तिन्ह कें मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदनदोउ.१२९.
काम कोह मद मान न मोहा .
लोभ न छोभ न राग न द्रोहा.
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया .
तिन्ह कें हृदय बसहुरघुराया.
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी .
जागत सोवत सरन तुम्हारी.
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं .
राम बसहु तिन्हके मन माहीं.
स्वामी सखा पित मात गुर जिन्हके सब तुम तात.
मन मंदिर तिन्हके बसहु सिय समेत दोऊभ्रात.१३०...
गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा .
जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा.
राम भगत प्रिय लागहिं जेही .
तेहि उर बसहु सहित बैदेही.
जाति पाति धनु धरम बड़ाई .
प्रिय परिवार सदन सुखदाई.
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई .
तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई.:
जाहि न चाहिअ कबहूँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु.
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु. १३१