छत पर तो आओ माहिया,
मिलना हो तो मिल लेना,
नहीं तो किसी और का सर खा महिया।
क्या फ़ायदा दोस्तों के संग रहके?
मिलने तो आ जाता,
मगर बैठा हूँ मार से दरके।
तुम तो काले, काले हो,
कुछ तो शर्म करो,
बेटी-बेटों वाले हो।
सारे दांत तो निकल गए हैं,
तुम फिर भी मुझे चाहती हो,
पर हमारे बेटी-बेटे तो तब भी तुम्हे सताते हैं?!
यहाँ प्यार की तो कोई कद्र ही नहीं है,
जाओ तुमसे बात नहीं करती!
तुम्हारी तो मूचछः भी नहीं है!
मज़ा प्यार का ज़रा मैं भी तो चख लूँ,
तुम हुक्म तो करो?!
मैं तो दाड़ी भी रख लूँ!
बाघ में आ जाया करो,
जब मैं सो जाऊँ,
तुम मक्खियाँ उड़ाया करो।
तुम रोज़ नहाया करो,
मक्खियों से डरती हो!
गुड़ थोड़ा खाया करो।
सुख प्यार का पाएंगे,
अब हम मिलचुके हैं,
गीत प्यार के गाएंगे।