प्रिन्स अली....नहीं असली
पहचानो हैं यह कौन
सुनो मेरे बोल...खोलूँ मैं पोल
है यह नक़ली
हाँ खुल गया राज़ जालसाज़
चलता था चाल चालबाज़
पेश हैं आपके प्यारे...प्रिन्स अली...
या फिर कहे.....अल्लादिन..
तों अली..है यह नक़ली...बस हैं अल्लादिन
हैं बदमाश...हुआ पर्दाफ़ाश ..एकदम जाली...
यह ना आएगा बाज़...फ़ेक दो इसको आज
एक ऐसी जगह जो यह भूले नहीं
लौटना भी ना हो इसके बस में नहीं
इसकी जम जाए क़ुल्फ़ी ...ऐसी जगह ढूँढी
दूर पर्वतों के पार ...सलाम...टाटा बाय...
एक्स प्रिन्स ...अली...