मैं दरवाजे की चौखट से लगी हुई खड़ी थी
जब मैंने देखा कि मई की एक रात कैसे रौशन हो गयी ।
लोग पैदल गुज़र रहे थे ,
और उन्हें देखकर मैं मुस्करा दी
तभी तुम्हारा घोड़ा मेरी दहलीज पर रुका
"पहाड़न , क्या तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कोई चिराग है?
और मैंने तुमसे कहा, "ओह, आओ,
और मेरे होठों को ले लो,
और मैं तुम्हें रौशनी दूंगी । ”
तुमने अपना घोड़ा छोड़ दिया,
और मैंने तुम्हे चिराग दिया,
और मेरे लिए तुम्हारी दो आँखें चमक रही थीं, मई के हरे तारे की भांति ।
हरी आँखे,
तुलसी की तरह ,
हरी
हरे गेहूं की तरह हरी ,
और हरे, हरे नींबू जैसी ,
वक्राकार छुरियों की चमक के साथ
जिन्होंने खुद को मेरे दिल में भोंक दिया
अब से मेरे लिए कोई सूरज नहीं हैं,
किसी तारे रे या चाँद का कोई वजूद नहीं ,
दो आँखों के सिवाय कुछ नहीं है मेरी जिंदगी में ।
हरी आँखें, हरी जैसी
तुलसी,
गेहूं की तरह हरी ,
और हरे, हरे नींबू जैसी
कमरे से हमने देखा कि सुबह का आगमन हो रहा था
सूर्य के चढ़ते ही तुमने मेरी लिपटी हुई बाँहों को शिथिल कर दिया
और मेरे मुंह में अब पुदीना और दालचीनी का स्वाद रह गया था ।
"पर्वत -वासी, मैं यह तुम्हे एक पोशाक के लिए देना चाहूंगा।"
मैंने तुमसे कहा, “यह सब हिसाब हो चूका है;
तुम्हे मुझे कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। ”
तुम अपने घोड़े पर सवार हो कर ,
मुझसे दूर चले गए;
और मेरे जीवन में कभी भी कोई रात
नहीं आई जो मई की उस रात जितनी खूबसूरत थी ।