दिल सभी ही का तो तोड़ूँ मैं
जो किया हैं कैसे मैं उसे बदल सकूँ
चले बस मेरा करूँ मैं वो
जो है मेरा दे दूँ
अंधेरी हैं राहें मैं जिधर से भी जाऊँ
मेरे भाई तुम्हें क्या बताऊँ
था मुझपे ही तुम्हें यक़ीन
मैंने क्या किया
ना सच कभी तुमसे कहा
पर शर्म कैसे छुपाऊँ
चाहूँ मैं कभी कोई तो आये
दर्द जो मिटाए
कहाँ जाऊँ...ना कुछ सूझे
कहीं कुछ तो हैं...
जानूँ मैं भुला कहीं
नहीं मिलती डगर कोई
मिलेगा नहीं,मुझे कोई