मैं नदी पर कपडे धोने जाती थी, धोने जाती थी
मैं शीत से अकड़ जाती थी
जब मैं कपडे धोने के लिए नदी पर जाती थी
मैं भूखों मरती थी मैं भूखों मरती थी
मैं भी रो पड़ती थी
अपनी माँ को रोता देख कर
पर मैं गाती भी थी, गाती भी थी
मैं सपनों में चली जाती थी, सपनों में चली जाती थी
और मनोचित्रण करते हुए
ऐसा कल्पनालोक बनाती थी
जहां मैं रोना-धोना भूल जाती थी
जहां मैं दुःख भी भूल जाती थी
मैं अब कपडे धोने के लिए नदी पर नहीं जाती
लेकिन मैं अभी भी रोती रहती हूँ
मैं अब वे सपने नहीं देखती जो मैं पहले देखा करती थी
मैं अब नदी में कपडे नहीं धोती
लेकिन फिर भी मैं ठंड से अकड़ी रहती हूँ
उन दिनों से कहीं अधिक मुझे ठंड की मार का असर है
ओह मेरी माँ मेरी माँ
मुझे कैसे याद आती है वह अच्छाई
विपत्ति की जो उन दिनों हम पर थी
उस भूख की जो उन दिनों हमें सताती थी
उस ठंड की जिसकी वजह से हम जम जाते थे
और मेरी कल्पना की उड़ान
हम अब भूखे नहीं हैं, माँ।
लेकिन हमारे पास अब नहीं है
कोई ख्वाइश कि हमें भूख से न बिलखना पड़े
हम नहीं जानते कि अब और किस किस्म के स्वप्न देखें
अब हम कोशिश करते हैं धोखा देने की
मरने की इच्छा को