"वो चाहते हैं मुझमें ठहराव हो... इस नदी जैसा. पर यह तो बिलकुल नहीं ठहरती!"
नदिया अच्छी लगती मुझे
ठहरे न यह किसी के लिए
यह बहता हुआ पानी हर दम बदले
पर इंसान न यूं रह सके
क़ीमत देनी पड़ती
कुछ खोना पड़ता है पाने के लिए
मोड़ पे नदिया के है क्या
क्या करता कोई इंतज़ार
देखूं एक बार
मोड़ पे नदिया के है क्या
लहरों के पार
पंछी जहां उड़े
किसके लिए
सपने सच हो जाएँ
करता है क्या इंतज़ार
कोई... मेरे लिए
लगता पीछे उन पदों के
या इस झरने के नीचे
क्या अनसुनी कर दूं आती उस धुन को
उस हमसफ़र के लिए
जो रखे मुझको महफूज़
और फिर कभी न देखूं उन सपनों को
मोड़ पे नदिया के है क्या
मोड़ पे नदिया के है क्या
देखूं एक बार
मोड़ पे नदिया के है क्या
लहरों के पार
छलकी मैं जाती
किसके लिए
क्यों सपने खीचें मुझको
नदिया के उस मोड़ पर
नदिया के उस मोड़ पर
चुन लूं मैं आसान सफ़र
ले जाए मंज़िल जिधर
कोकोम की हो जाऊं
सारे उन सपनों से दूर
क्या अब भी वो रास्ता मेरा देखता है
नदिया के मोड़ पर