ओ…
हम…
थोड़ी सी अजनबी हो तुम
थोड़ी अपनी सी भी हो तुम
देखा हैं ये जहान
कोई तुम जैसा कहाँ
तुम्हें कैसे बताऊँ मैं ,क्या हो तुम?
शायद मेरा खोया पता हो तुम
तुमसे मिलके लगा
मैं खुद से भी हूँ मिल गया
जो तुम आ गये हो
तो ऐसा लगा हैं
मेरी धड़कने हैं गूंजी हुई
बस एक नाम से
जो बेताबियाँ हैं
जो बेचैनियाँ हैं
सुकून इन्हें ना सुबह से हैं
ना हैं शाम से
मेरा ख़्वाब हो , मेरी आरज़ू
तमन्ना मेरी , मेरी जुस्तजू
मैं एक पल को भी जो तुम बिन रहूँ
तो कैसे रहूँ?
तुम नूर हो रोशनी हो तुम
कम ना हो जो ख़ुशी वो हो तुम
सोचता हूँ यहाँ
कोई तुम जैसा कहाँ
जो तुम आ गये हो
तो ऐसा लगा हैं
मेरी धड़कने हैं गूंजी हुई
बस एक नाम से
जो बेताबियाँ हैं
जो बेचैनियाँ हैं
सुकून इन्हें ना सुबह से हैं
ना हैं शाम से