वो जहाँ आसमाँ दरिया मिल जाए
कोई पूछे तो, मंज़िल है जो
बस अब और मुझे सोचना नहीं
मैं तो चली
अकेली जान
मंज़िल अनजान
मेरा हर क़दम, मेरा हर रास्ता
अब तो हर-दम मुझे ख़ुद चुनना
इस बार चल दूँ
फिर मैं ना रुकूँ
चाहे दिल ये ही
हर अँधेरे को है छेड़ती, वो रौशनी
मैं चाहूँ जो, अब होगा वो
चाँदनी है चली, मेरे संग
अब हवा भी
पास आए वो
मंज़िल है जो