हे तुम, जो हो ठंड में बैठे
अकेले हो चले, बूढ़े हो रहे
क्या महसूस कर सकते मुझे?
हे तुम, खड़े हो गलियारे में
पेरो में जैसे जलन और मुरझाती हुई हँसी
क्या महसूस कर सकते मुझे?
हे तुम,किसी को मत चुराने देना वो रोशनी जो तुमसे हैं
हार ना मानना बिना संघर्ष किये
हे तुम, खुद अपने ख़याल रखने वाले
बैठे निरवस्त्र फ़ोन के पास
क्या तुम मुझे छू सकोगे?
हे तुम, दिवार से कान लगाए
करते हो इंतेज़ार जो पुकारें तुम्हें
क्या तुम मुझे छू सकोगे?
हे तुम, क्या मदद करोगे इस बोझ को हटाने में?
खोलो अपने दिल के दरवाज़े, मैं आ रहा हूँ अब घर
मगर यह तो थी बस एक कल्पना
दिवार यह है बहुत ऊँची
जैसे की तुमको दिखती
चाहे कितनी भी कर ले वो कोशिश,
वो ना हो पाया मुक्त
और कीड़े-मकोड़े खा चुके थे उसका दिमाग़
हे तुम, सड़क पे खड़े
हमेशा जो बोला जाए वो करने वाले,
क्या तुम कर सकते हो मेरी मदद?
हे तुम,जो हो दिवार के पार,
बोतल तोड़ने वाले हॉल में,
क्या तुम कर सकते हो मेरी मदद?
हे तुम,मत कहना मुझे नहीं कोई उम्मीद
एकता में हैं अटूट शक्ति,अलग होते ही हम बिखर जाएँगे
हम बिखर जाएँगे…हम बिखर जाएँगे…हम बिखर जाएँगे