refrain:
धीमी धीमी चलने लगी हैं अब हवाएं
धीमी धीमी खुलने लगी हैं आज राहें
रंगने लगे हैं मंजिल को जाने के राह सारे
जैसे आसमान पे छींटे पड़े हो बनके सितारे
धीमी धीमी रौशनी सी बह रही है इन हवाओं में यहाँ
हैरत हैरत हैरत है
तू है तो हर एक लम्हा ख़ूबसूरत है
शाम थी कोई जो नूर आ गया यहाँ
हो गई है सुबह
रात का नाम-ओ-निशान तक नहीं कहीं
है सेहर हर जगह
खोई खोई ख़्वाबों में छुपी छुपी ख़्वाहिशें
नरम से रेत पे गीली गीली बारिशें
लिपटा हूँ राहों में
राहों की बाहों में है
अब मेरी जगह
कल पे छा गया धुआं
यह जो पल नया हुआ
हो गई शुरू नई दास्तान
(refrain)