जीवन की सार्थकता पाने के लिए हमें हमेशा दुनिया के अंतिम छोर तक नहीं पहुंचना है
जरूरी नहीं कि यह मंज़िल यहां से दूर हो
कई उम्मीदें हैं जो साकार होती हैं
चुनौती स्वीकार करने से , चाहे वो कितनी भी छोटी क्यों न हो
जहां चाहो जाओ
जाओ, लोगों के बीच
जाओ, जैसे भी आप से हो सके
लेकिन बैठो मत
जाओ, जहाँ आंसूं हैं
जहां चीखें हैं
यहाँ या कहीं और
लेकिन बैठो मत
जहां चाहो जाओ
जाओ, लोगों के बीच
जाओ, जैसे भी आप से हो सके
लेकिन बैठो मत
जाओ, जहाँ आंसूं हैं
जहां हंसी है
यहाँ या कहीं और
लेकिन बैठो मत
बैठे न रहें
दरवाज़ों के पीछे हम खुद को बचाए रखते हैं
हमारे झरोखे हमें छोटा बनाते हैं
यदि हम कुछ करने के लिए कमर नहीं कसते
तो जो गाँधी ने कर के दिखाया वह हमारे लिए किस काम का है
जहां चाहो जाओ
जाओ, लोगों के बीच
जाओ, जैसे भी आप से हो सके
लेकिन बैठो मत
जाओ, जहाँ आंसूं हैं
जहां चीखें हैं
यहाँ या कहीं और
लेकिन बैठो मत
जहां चाहो जाओ
जाओ, लोगों के बीच
जाओ, जैसे भी आप से हो सके
लेकिन बैठो मत
जाओ, जहाँ आंसूं हैं
जहां हंसी है
यहाँ या कहीं और
लेकिन बैठो मत
या तो हमें यह राह पकड़नी है और आगे बढ़ना है या बैठे रहना है
हमें चुनाव करना पड़ेगा, निठल्ले खड़े रहने से काम नहीं चलेगा
कुछ तो करना पड़ेगा, आगे बढ़ना पड़ेगा
जैसा कि महात्मा ने किया था
सोओ मत, लेटे मत रहो
अन्याय मत सहो, मूक दर्शक मत बने रहो
हाथ पर हाथ धर कर
जहां चाहो जाओ, लोगों के बीच
जाओ, लेकिन बैठो मत
जाओ, जहाँ आंसूं हैं
जहां चीखें हैं
यहाँ या कहीं और
लेकिन बैठो मत
जहां चाहो जाओ
जाओ, लोगों के बीच
जाओ, जैसे भी आप से हो सके
लेकिन बैठो मत
जाओ, जहाँ आंसूं हैं
जहां हंसी है
यहाँ या कहीं और
लेकिन बैठो मत
ओह बैठे न रहें
ओह बैठे न रहें