[पहली पंक्ति]
तुम परछाई थे और मैं रोशनी,
क्या अब महसूस कर सकते हो मुझे?
एक और तारे की तरह तुम खो से गए
लक्ष्य हमारा भी दूर हो चला है,1
.........
[पहला पूर्व अनुपद]
कहाँ हो तुम अब?
कहाँ हो तुम अब?
कहाँ हो तुम अब?
क्या वह बस मेरा फ़ितूर था?
कहाँ हो तुम अब?
क्या तुम बस कल्पना थी?
[अनुपद]
कहाँ हो तुम अब?
अटलांटिस की तरह डूब चुके हो, गहरे सागर में,
कहाँ हो तुम अब?
एक और ख्वाब की तरह,
कुचले जा चुके हो तुम अब।2
मैं मिट चुका हूँ, मैं मिट चुका हूँ।
खो चुका हूँ, मिट चुका हूँ।
खो चुका हूँ, मिट चुका हूँ।
[दूसरी पंक्ति]
इन किनारों पर न मिल सका जिसे ढूंढ रहा था,
तो मैं चल पड़ा, लगाने गोता,
इस गहरे सागर की तनहाई में,
मैं ज़िंदा हूँ!
[ दूसरा पूर्व अनुपद]
कहाँ हो तुम अब?
कहाँ हो तुम अब?
इस धुँधलाती रोशनी में,
तुम मेरी आस हो,
कहाँ हो तुम अब?
कहाँ हो तुम अब?
[अनुपद]
कहाँ हो तुम अब?
अटलांटिस की तरह डूब चुके हो, गहरे सागर में,
कहाँ हो तुम अब?
एक और ख्वाब की तरह,
कुचले जा चुके हो तुम अब।
मैं मिट चुका हूँ, मैं मिट चुका हूँ,
खो चुका हूँ, मिट चुका हूँ,
खो चुका हूँ, मिट चुका हूँ!
1. दृष्टिकोण से2. वास. दैत्य घूम रहे हैं मुझ में