और अगर तुम ज़िंदा न रहे
तो बताओ मैं क्यों
अपनी ज़िंदगी को खींचती फिरूँगी
जिसमें न कोई उम्मीद होगी न कोई रञ्ज
और अगर तुम ज़िंदा न रहे
मैं प्रेम का सृजन करने का प्रयत्न करूँगी
एक ऐसे चित्रकार के तरह जो अपनी उंगलियों के नीचे
दिन के रंगों को पैदा होते देख
हैरान हो जाता है
और अगर तुम ज़िंदा न रही
तो मुझे बताओ कि मुझे किसके लिए इस जहान में रहना चाहिए
मेरी बाँहों में सोती हुई राह जाती लड़कियाँ
जिनके लिए मेरे दिल में कोई प्यार ही नहीं उत्पन होगा
और अगर तुम ज़िंदा न रही
मैं बस एक और तुच्छ प्राणी बन के रह जाऊँगा
इस दुनिया में, जो बेमतलब आता -जाता रहता है
मैं भटका हुआ महसूस करूँगा
मुझे तुम्हारी ज़रूरत होगी
अगर तुम ज़िंदा न रहे
मुझे बताओ कि मैं कैसे ज़िंदा रह पाऊँगी
मैं अपने होने का नाटक ही कर सकूँगी
लेकिन मेरा अस्तित्व सच नहीं होगा
और अगर तुम ज़िंदा न रहे
मुझे लगता है कि मुझे पता चल जायेगा
ज़िंदगी का राज़ , क्यों का जवाब
और मैं तुम्हारा सृजन कर के
तुम्हें देख पाऊँगी
और अगर तुम ज़िंदा न रहे
और अगर तुम ज़िंदा न रहे
और अगर तुम ज़िंदा न रहे