शुभरात्रि प्रिय !
यह दिन बस मेरी ज़िंदगी का नमूना है
एक और रात, प्रिय
और फिर एक नये बिलगाव की छाया
यह सच है, मुझे पता है
कि कल तुम मुझे फिर से अपना प्यार दोगे
और इस तरह
तुम्हे हमेशा के लिए खोने का मेरे अन्दर अभ्यास चलता रहेगा
और हर दिन एक नये सूर्योदय पर
मैं एक प्रकार की निष्ठा की गुलाम हो गई हूँ
और रात होते ही एक गहरी उदासी
मुझे घेर लेती है और मुझ पर अपना आधिपत्य जमाना चाहती है
और यह मैं हूँ हमेशा की तरह
लेटी हुई और सो जाने की कोशिश में
कमरे में, मेरी सांसों में अभी भी तुम्हारी गंध आ रही है
जो तुम जाते हुए छोड़ गये थे
प्रिय मुझे खेद है।
मुझे क्षमा करें यदि मैं तुम्हे कामोन्माद से भरी हुई नज़र आती हूँ
तुम जानते हो , प्रिय
मैं यहां अकेली तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं हूँ
और मैं यह जानती हूं कि कल
मुझे फिर से खुद के हजारों टुकड़े समेटने होंगे
इस बीच, प्रिय
मैं इस ख्याल में रहना चाहती हूं कि मैं अभी भी तुम्हारी बांहों में हूं।
और हर दिन एक नये सूर्योदय पर
मैं एक प्रकार की निष्ठा की गुलाम हो गई हूँ
और रात होते ही एक गहरी उदासी
मुझे घेर लेती है और मुझ पर अपना आधिपत्य जमाना चाहती है
और यह मैं हूँ हमेशा की तरह
लेटी हुई और सो जाने की कोशिश में
कमरे में, मेरी सांसों में अभी भी तुम्हारी गंध आ रही है
जो तुम जाते हुए छोड़ गये थे
और हर दिन एक नये सूर्योदय पर
मैं एक प्रकार की निष्ठा की गुलाम हो गई हूँ
और रात होते ही एक गहरी उदासी
मुझे घेर लेती है और मुझ पर अपना आधिपत्य जमाना चाहती है
और यह मैं हूँ हमेशा की तरह
लेटी हुई और सो जाने की कोशिश में
कमरे में, मेरी सांसों में अभी भी तुम्हारी गंध आ रही है
जो तुम जाते हुए छोड़ गये थे
और हर दिन एक नये सूर्योदय पर...........