रात धीरे-धीरे होती जा रही है
मैं गर्मी में अकेली इंतजार कर रही हूँ
मुझे पता है, पता है कि तुम अपनी मनमानी करके रहोगे
जब तक तुम्हें वापिस घर नहीं लौटना है
मैं तुम्हें न नहीं कह सकती
लेकिन तुम्हें न कहने से मुझे कुछ हासिल नहीं होगा
और तुम्हें भगाने से मुझे कुछ हासिल नहीं होगा
क्या मेरा थोड़ा और प्यार पा कर तुम मुझ पर निर्भर करना शुरू कर दोगे
क्या मेरा थोड़ा और प्यार सुखद अंत लाएगा
क्या मेरा थोड़ा और प्यार इसे ठीक कर देगा?
क्या मेरा थोड़ा और प्यार इसे ठीक कर देगा?
कहां गई, कहां गई मेरी मासूमियत?
कैसे, एक जवान लड़की को कैसे पता चलता ?
मैं फंस गई हूँ, तुम्हारी आँखों के जादू में फंस गई हूँ
तेरी बाहों की सुखद गर्मी में
तुम्हारे झूठ के जाल में
लेकिन तुम्हें न कहने से मुझे कुछ हासिल नहीं होगा
और तुम्हें भगाने से मुझे कुछ हासिल नहीं होगा
क्या मेरा थोड़ा और प्यार पा कर तुम मुझ पर निर्भर करना शुरू कर दोगे
क्या मेरा थोड़ा और प्यार सुखद अंत लाएगा
क्या मेरा थोड़ा और प्यार इसे ठीक कर देगा?
क्या मेरा थोड़ा और प्यार इसे ठीक कर देगा?