हमेशा ही हम अंत में
एक-दुसरे को दुःखी कर बैठते हैं
क्योंकि बहसबाजी में पड़ जाते हैं
क्योंकि बहसबाजी में पड़ जाते हैं
क्यों, अब हम बात नहीं कर सकते
बिना झगड़ा खड़ा किये?
और हम इसे जीतना चाहते हैं
और हम इसे जीतना चाहते हैं।
हम अंत में कहाँ पहुँचेंगे?
इस पीडादायक और बेतुके रवैये के साथ
चलो नम्रता अपनाएँ ,
और अपनेपन की ओर जाएँ
जो हमारी आत्माओं की पूर्णता में निहित है ।
हम अंत में कहाँ पहुँचेंगे?
हमेशा एक ही गलती करने के दुष्चक्र में ,
हमेशा इस गलत रवैये को सबसे अधिक महत्व देकर , आखिर हम कहाँ पहुँचेंगे?
एक प्यार ही है ,
जो हमें अलग नहीं होने देगा।
शायद अपने अतीत की वजह से
हमारे लिए झुकना बहुत कठिन है
और इससे हमें सीखने में तकलीफ होती है
और इससे हमें सीखने में तकलीफ होती है।
हम अंत में कहाँ पहुँचेंगे?
इस पीडादायक और बेतुके रवैये के साथ
चलो नम्रता अपनाएँ ,
और अपनेपन की ओर जाएँ
जो हमारी आत्माओं की पूर्णता में निहित है ।
हम अंत में कहाँ पहुँचेंगे?
हमेशा एक ही गलती करने के दुष्चक्र में ,
हमेशा इस गलत रवैये को सबसे अधिक महत्व देकर , आखिर हम कहाँ पहुँचेंगे?
एक प्यार ही है ,
जो हमें अलग नहीं होने देगा।